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ग़ज़ल
डूब कर ख़ून में किस रंग से पैकाँ निकला
दिल-ए-ईज़ा-तलब अब तो तिरा अरमाँ निकला
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ज़ख़्म क्यों दिल पे लगाते हो जो भरने के नहीं
मिट गए नक़्श वफ़ा के तो उभरने के नहीं
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दिल का बुरा नहीं मगर शख़्स अजीब ढब का है
मुझ से है ख़ास दुश्मनी वैसे तो यार सब का है
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
दिल में जो बात खटकती है दहन तक पहुँचे
ख़ामुशी मरहला-ए-अर्ज़-ए-सुख़न तक पहुँचे